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जो किसी की नहीं सुनता...

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सन १९४९ में एक कक्षाध्यापक ने एक छात्र के अर्धवार्षिक रिपोर्ट कार्ड में लिखा -"अध्ययन के हिसाब से गरडन का यह आधा वर्ष निराशाजनक रहा है। इस दौरान उसकी उपलब्धियाँ असन्तोषजनक रही हैं। उसके द्वारा तैयार सामग्री यह स्पष्ट कराती है की उसने ढंग से अध्ययन नहीं किया है।  उसकी उत्तर पुस्तिकायें फाड़ने योग्य हैं।  उसे कार्यिकी (BIOLOGY) में तो पचास  अंकों में केवल दो अँक मिले  हैं। उसके दूसरे कार्य भी इसी तरह निराशाजनक पाये गए हैं,जिसके कारण उसे अन्य कठिनाइयों का भी सामना करना पड़ सकता है। वस्तुतः वह किसी की नहीं सुनाता तथा प्रत्येक कार्य को अपने ढँग से करने कि ज़िद करता है। मुझे बताया गया है की वह वैज्ञानिक बनाना चाहता है। उसके वर्तमान को देखकर यह बात हास्यास्पद लगती है की जो छात्र जीव विज्ञान के सामान्य तथ्यों को सीखने में असमर्थ है वह एक विशेषज्ञ कैसे बन सकता है? यह उसे और उसके पढाने वाले दोनों के लिए केवल समय की बर्बादी होगी।" तथापि गरडन ने उस रिपोर्ट को एक फ्रेम में जड़ दिया। वस्तुतः यह छात्र परीक्षा में मिले अंकों के आधार पर अपने ग्रुप में अंतिम स्थान पर

काबुल में नाश्ता, लाहौर में लंच और दिल्ली में डिनर

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बात २००७ की है जब तत्कालीन प्रधानमन्त्री डॉ मनमोहन सिंह फिक्की के मंच पर लोगों को सम्बोधित कर रहे थे।  उन्होंने पाकिस्तान के सवाल पर कहा था की "एक दिन ऐसा आएगा जब कोई नाश्ता अमृतसर में ,लंच लाहौर में और डिनर दिल्ली में करेगा।" उनकी यह प्रागुक्ति प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी पर अत्यधिक सटीक बैठती है।  क्योंकि मोदी ने नाश्ता काबुल में किया , लंच लाहौर में व डिनर के लिए वे दिल्ली में उपस्थित थे।                                                                                                                                                                            प्रधानमन्त्री मोदी जिस अप्रत्याशित तथा 'आउट ऑफ़ बॉक्स ' राजनीती के लिए जाने जाते है , पाकिस्तान का आकस्मिक भ्रमण भी उसी का परिणाम है. मोदी की इस आकस्मिक यात्रा के परिणाम चाहे जो भी हो यह तो स्पष्ट है की मोदी ने पाकिस्तानी सत्ता  के एक स्तम्भ को साध लिया है.वस्तुतः पाकिस्तान में सत्ता के तीन केंद्र हैं इस्लामाबाद(जिसके मुखिया नवाज़ शरीफ़ हैं), रावलपिंडी (जिसके प्रमुख जनरल राहील  शरीफ़ हैं) और कट्टरपंथी